हेमंत के गढ़ में झंडा गाड़ पाएगी बीजेपी या फिर होगा बड़ा खेला!

हेमंत के गढ़ में झंडा गाड़ पाएगी बीजेपी या फिर होगा बड़ा खेला!

झारखंड
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झारखंड विधानसभा चुनाव के तारीखों का ऐलान हो चुका है. पहली बार झारखंड में दो चरणों में चुनाव होगा. पहले चरण का चुनाव 13 नवंबर जबकि दूसरे चरण का चुनाव 20 नवंबर को होगा. 23 नवंबर को मतगणना होगी. इस बार का चुनाव पिछले साल के मुकाबले काफी दिलचस्प होने वाले हैं. चुनाव से पहले कई नई पार्टियां चुनावी मैदान में होगी. जिसमें जयराम महतो की JKLM, तो दूसरी ओर राजस्थान की बाप पार्टी का झारखंड में दस्तक हो चुका है. दोनों पार्टियों का मुकाबला एनडीए और इंडिया से है. दोनों दलों पर अपना गढ़ बचाने का भी दबाव है. झारखंड की चार ऐसी सीट जहां बीजेपी भी जीत के लिए संघर्ष करती रही है. लेकिन आज तक नहीं जीत पाई है. जिसमें बरहेट, लिट्टीपाड़ा, शिकारीपाड़ा और डुमरी शामिल है. ये झामुमो का अभेद किला है जहा बीजेपी दशकों से संघर्ष करती रही है लिट्टीपाड़ा में बीजेपी कभी नहीं जीत पाई है. हालांकि इसबार देखना होगा कि बीजेपी हेमंत के गढ़ में सेंध लगा पाती है या नहीं.

डुमरी, झारखंड गठन के बाद जेएमएम का कब्जा

डुमरी विधानसभा सीट झामुमो का एक अभेद्य किला है. झारखंड गठन के बाद से यहां पर किसी और पार्टी ने कभी जीत हासिल नहीं की है. यहां से झामुमो के कद्दावर नेता रहे जगरनाथ महतो ने 2005 से 2019 तक लगातार जीत दर्ज की. उनके निधन के बाद पार्टी ने उनकी पत्नी बेबी देवी को टिकट दिया. इस सीट पर जीत दर्ज करते हुए झामुमो के गढ़ को सुरक्षित रखा. वहीं 1977 में इस सीट से जनता पार्टी जीत दर्ज की थी. इसके बाद इस सीट पर बीजेपी कभी नहीं जीत पाई. 2014 के मोदी लहर भी झामुमो के इस अभेद किले को नहीं भेद पाई. हालांकि 2014 के चुनाव में यहां त्रिकोणिय मुकाबला देखने को मिलेगा. इस सीट पर आजसु, झामुमो और जयराम महतो ने चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है

पिछले कुछ चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो 2009 के चुनाव में डुमरी सीट से जगरनाथ महतो को जदयू के दामोदर प्रसाद महतो ने चुनौती थी. जदरनाथ महतो को 33960 मत जबकि दामोदर प्रसाद महतो को 20292 मत मिले थे. इसी तरह 2019 के विधानसभा चुनाव में डुमरी सीट से जेएमएम के जगरनाथ महतो को 71017 आजसू के यशोदा देवी को 36817, जबकि भाजपा के प्रदीप साह को 35994 मत मिले थे.

बरहेट, 1977 के बाद जीत के लिए संघर्ष करती बीजेपी

बरहेट साहिबगंज जिले में स्थित है यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है. यह सीट सीट झामुमो का अभेद किला है 1990 से यहां से लगातार झामुमो जीतती रही है. 1977 के बाद बीजेपी यहां पर आजतक नहीं जीत पाई है. यह आदिवासी बहुल क्षेत्र है यहां जनता चेहरा नहीं तीर-धनुष देखकर जनता को वोट देती है. इस सीट पर 2014,019 में लगातार दो बार हेमंत सोरेन की जीत हुई है. वर्ष 2019 में बरहेट विधानसभा सीट पर झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने 73725 (53.49 प्रतिशत) वोट प्राप्त कर जीत हासिल की. भाजपा से साइमन मालटो को 47985 (34.82 प्रतिशत) वोट मिले.

शिकारीपाड़ा, जनता की पसंद तीर-धनुष

शिकारीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र दुमका लोकसभा क्षेत्र से जुड़ा है. अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित शिकारीपाड़ा सीट जेएमएम (झारखंड मुक्ति मोर्चा) का अभेद किला माना जाता है. लोकसभा के चुनाव में इस क्षेत्र की जनता ने यहां से लगातार सात बार विधायक चुने जाते रहे झामुमो के वरिष्ठ नेता नलिन सोरेन को अपना सांसद चुन लिया है. इस वजह से फिलहाल इस क्षेत्र में विधायक का पद खाली है. 1952 में अस्तित्व में आये इस विधानसभा क्षेत्र में 1979 में हुए उपचुनाव में झामुमो ने जीत दर्ज की है विधायक डेविड मुर्मू बने. उनकी जीत के बाद यह सीट झामुमो के पाले में आ गई. 1977 में इस सीट पर जनता पार्टी जीती थी लेकिन फिर कभी नहीं जीत पाई.

शिकारीपाड़ा आदिवासी बहुल क्षेत्र है. इस क्षेत्र में आदिवासी मतदाताओं की आबादी लगभग 55 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाताओं की आबादी करीब 8 प्रतिशत हैं. जबकि कोयरी 4, दलित 6, अन्य पिछड़ी जाति 7 और जातियों की आबादी लगभग 13 प्रतिशत है। लगातार 45 वर्षों तक इस क्षेत्र पर झामुमो का एकछत्र राज रहा है.

लिट्टीपाड़ा, आज तक नहीं खिला कमल

लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र 1980 से झामुमो और 2014 के चुनाव को छोड़ दे तो स्टीफन मरांडी का कब्जा है. साइमन मरांडी और उनके परिवार का इस सीट पर करीब 44 साल से लगातार कब्जा है। साइमन मरांडी ने 1977 में बतौर निर्दलीय पहली बार इस सीट पर अपना कब्जा जमाया था। इसके बाद वे झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के नेतृत्व में झामुमो से जुड़ गए. 2014 में झामुमो से मतभेद के कारण मरांडी बीजेपी में शामिल हो गए थे. लेकिन झामुमो और अपने परिवार के गढ़ में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 2019 से इस क्षेत्र से उनके पुत्र दिनेश विलियम मरांडी विधायक हैं।1989 में सांसद चुने जाने के बाद साइमन मरांडी की पत्नी सुशीला हांसदा 1990 में लिट्टीपाड़ा विधानसभा सीट से विधायक बनीं और चार बार उन्हें क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला. 1957 में अस्तित्व में आये इस विधानसभा क्षेत्र में झारखंडी विचार धारा का समर्थक समझा जाने वाले संताल,पहाड़िया अनुसूचित जनजाति की आबादी करीब 73 प्रतिशत और मुस्लिम समुदाय की आबादी लगभग 4 प्रतिशत है. इस सीट पर बीजेपी कभी नहीं जीत पाई है.

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