शिव सदैव प्रासंगिक थे, हैं और रहेंगे। वैसे भक्ति सागर में गोते लगाने वालों के लिए श्रावण मास में शिवत्व की प्रकाष्ठा का अनुभव कोई नई बात नहीं। उस पर बात श्रावण के सोमवार की हो तो कहना हीं क्या, आज इस श्रावणी सोमवारी को क्षीरसागर से निकले हलाहल को आज झारखंड के परिपेक्ष में देखने की कोशिश होगी और उस निशिकांत शिव के जलते कंठ की तपिश को राहत पहुंचाने की होगी जिसके लिए अनगिनत कांवरिया जल अर्पण कर रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल ये झारखंड के राजनीतिक हलाहल को अपने कंठ में धारण करने शिव हमारे बीच कब आयेंगे।
लाखों लोगों की शहादत, बलिदान, कुर्बानियां और उनके सिसकियों के बाद हमें स्वर्ग से सुंदर राज्य झारखंड मिला। प्रकृति ने जिसे अपना सब सुख,सौंदर्य,वैभव सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक नेमतों के वरदान से सजाया और संवारा।

राज्य गठन को 25 साल होने को है। विकास की पटकथा इस राज्य के लिए लिखी जानी चाहिए थी वह अभी भी दूर दूर तक कहीं दिखाई नहीं देता है. वहीं इसके साथ के बने राज्य आज विकास की मुख्यधारा से जुड़ आगे बढ़ रहे हैं। परंतु झारखंड की राह में ऐसा घनघोर अंधियारा है की विकास के मार्ग तक सरपट दौड़ना तो क्या रेंग कर पहुंच जाए तो भी बहुत बड़ी बात होगी।
सच में कितनी हास्यास्पद बात है की जिस राज्य से देश को 40% खनिज मिलता हो उस राज्य की जनता गरीबी,बेरोजगारी,पलायन,
भीतरी बाहरी, खतियानी नाम के कितने प्यालों में नित नई नई हलाहल को पीने को विवश
घुसपैठ,अशिक्षा,क्षेत्रवाद, भीतरी बाहरी, खतियानी नाम के कितने प्यालों में नित नई नई हलाहल को पीने को विवश है। चुनाव के समय कोई आदिवासी चेहरा बन कर आता है, कोई खतियानी का मुद्दा चमकाता है तो कोई नौकरी और निवेशकों को लाने का सब्जबाग दिखाता है। चुनाव खत्म होते वही ढाक के तीन पात का हिस्सा और किस्सा झारखंड की जनता बन कर रह जाती है। पिछले 20/25 सालों में इससे इतर तो कुछ और होता दिखा भी नहीं।
जिसका मूल कारण है हमारे नीति नियंताओं के पास राज्य के लिए कोई ठोस रोड मैप बनाने के लिए जरूरी सोच और परिपक्विता की कमी। जिसका खामियाजा राज्य के होनहार युवाओं से लेकर हर मेहनतकश झारखंडी उठा रहा है। लेकिन सत्ता के नशे में मदमस्त नीति निर्धारकों को सिर्फ कुर्सी और उसे बचाए रखने के तरीकों के अलावे कुछ और नहीं दिख रहा। झारखंड को आज ऐसे ऊर्जावान नेतृत्व की जरूरत है जो इसके जड़ों को झकझोरने का माद्दा रखता है, जिससे की दीमक की भांति इसके साखों में जितने भी अकर्मण्यता के परजीवी अपना घर बनाए हुए हैं। उनका समूल्य नष्ट हो जाए।
कहते हैं न हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पर रोती है, बड़ी मुश्किल से चमन में होता है कोई दीदवार पैदा…बेबाक,स्पष्टवादी सोच, नकारात्मक माहौल में भी सकारात्मकता के बीज अंकुरित करने की कला कौशल और अपने सालों के कॉरपोरेट जीवन के अनुभवों में राजनीतिक दूरदर्षिता
और मानवीय मूल्यों को जोड़ अपनी कर्मभूमि के लिए अडिग अकेला एक राही के रूप में जब कोई उभरता है, तो जनता जनार्दन का विश्वास स्वतः उसके साथ हो लेता है। इसी विश्वास का नाम है जन सेवक , माननीय गोड्डा सांसद डॉ निशिकांत दुबे।
अपने कर्मभूमि के लिए जिसने अपने और अपने परिवार पर संकड़ों FIR,
सामाजिक और राजनीतिक द्वेष रूपी हलाहल का पान किया पर कभी भी कर्तव्य पथ से विमुख नहीं हुए। यही कारण है आज वो झारखंड के एक मात्र जनप्रतिनिधि हैं जिन्हें जनता ने लगातार रिकॉर्ड चौथी बार सांसद चुन कर अपने हितों की रक्षा के लिए लोकतंत्र के मंदिर में भेजा है। ये बानगी है उस विश्वास की जो आम जनसाधारण के हृदय में निशिकांत दुबे जी के लिए है, जो काफी है सिद्ध करने के लिए की आम जनमानस उनमें अपना, अपने परिवार का और देश का भविष्य तलाशता है। इसकी सब से बड़ी कुंजी शायद यही है अपने बेबाक और स्पष्टवादी सोच के कारण निशिकांत जी ने कभी वोट बैंक की राजनीति नहीं करी, राष्ट्रवादी सोच के साथ राष्ट्र सर्वोपरि की बात पर बल दिया।
जिसका ज्वलंत उदाहरण संसद में हाल में ही दिया हुआ उनका एक क्रांतिकारी बयान , जो आगे चल कर एक नए उलगुलान में परिवर्तित हो जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए। विपक्ष को मानो काटो तो खून नहीं, क्योंकि सोसल मीडिया के जमाने में उनकी तुष्टिकरण की राजनीति की बखिया पहले से उधड़ चुकी है और कहीं न कहीं जनता विपक्ष के चाल चरित्र और चेहरा स्पष्ट देख समझ चुकी है।
निशिकांत के शब्दों ने राष्ट्रवादियों के अंदर एक नई ऊर्जा का संचार किया है
अपने धीर गंभीर अंदाज में उन्होंने झारखंड में घट रही हिन्दू आबादी, बढ़ रही बांग्लादेशी घुसपैठ, आदिवासी बहनों के साथ छल कर जमीन हड़पने के लिए विवाह,धर्मांतरण और NRC का मुद्दा मुखर हो कर उठाया। अपने दिए गए व्यक्तव्य के साथ उन्होंने सदन ठोस साक्ष्य भी प्रस्तुत किए। जो दर्शाता है की सिर्फ हंगामा खड़ा करना इनका मकसद नहीं है, इनकी कोशिश राज्य के सूरत को बदलने की है और चुनौतियों से लड़ने की है।
निशिकांत जी ने देश हित के लिए अपने दूरगामी सोच को प्रदर्शित करते हुए उन्होंने एक क्रांतिकारी सुझाव देते हुए घुसपैठ की समस्या पर अंकुश लगाने के लिए झारखंड के संथाल परगना, बिहार के अररिया,किशनगंज,कटिहार और बंगाल के मालदा,मुर्शिदाबाद जैसे जिलों को मिलाकर एक नए केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने की मांग रखी, जो की सभी मायनों में तर्कसंगत और उन्नतिपूर्ण है, जिन जगहों का उल्लेख उन्होंने किया वहां की दुर्दशा की मूल वजह तुष्टिकरण की राजनीत के सहारे कुर्सी बचाए रखने से ज्यादा कुछ भी नहीं है।
राज्य के मुखिया पर लगे गंभीर आरोप
जिस राज्य के मुखिया पर गंभीर आरोप लगे हों और उन्हें सरकारी मेहमान बनना पड़ा हो, राज्य के एक मंत्री को जमानत न मिल पा रही हो, मंत्री के मातहत लोगों के पास करोड़ों रुपए कैश मिल रहे हों, सरकारी अधिकारी बेलगाम हो l ऐसे में राज्य को एक सुलझे हुए परिपक्व स्टेट्समैन के दूरदर्शिता की जरूरत है, जिसे सबों की नब्ज़ पकड़ने की कला में पारंगत हासिल हो। आज राज्य को मुख्यमंत्री के रूप में एक ऐसे शख्सियत की जरूरत है जिसे कोई बरगला न सके, अपितु उसके शब्द ब्रह्मलकीर हो जिससे प्रशासनिक अम्लों में संदेश जाए की जो आज तक हुआ वो अब बर्दाश्त नहीं होगा। राज्य में सभी तरह के खनिज संपदा, युवा शक्ति, शोध विशेषज्ञ, अच्छी केंद्रीय संस्थाएं सब होते हुए भी विकास की राह से कोसों दूर झारखंड को अब एक ऑलराउंडर मुख्यमंत्री की जरूरत है।
जो हलाहल का प्याला देख जनता को आगे न करे अपितु साहस दिखा विष को धारण कर जन कल्याण के मार्ग पर राज्य का नेतृत्व कर सके।
आज के संदर्भ में टूटते उम्मीदों सी स्याह रात में भटकते झारखंड के लिए आशा के सवेरे का नाम ही निशिकांत दुबे है।
सोचिएगा जरूर