अपनी कई मांगों को लेकर भारत आदिवासी पार्टी ने राजभवन घेराव का ऐलान किया है. जमीन लूट, पेशा एक्ट, सीएनटी और एसपीटी के उल्लंघन, स्थानिय नीति सहित कई मामलों को लेकर पार्टी 10 सितंबर को प्रदर्शन करेगी. पार्टी का कहना है कि राज्य में लगातार आदिवासियों की जमीन पर अवैध तरीके से कब्जा किया जा रहा है. यह कब्जा नौकरशाहों के सांठ-गांठ से किया जा रहा है. जिसके खिलाफ सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है.
पेशा एक्ट का उद्देश्य आदिवासियों की जमीन की रक्षा करना है
पेशा एक्ट को लागू करने को लेकर यह प्रदर्शन होगा. यह एक्ट देश के 7 राज्यों में लागू किया गया है जिसमें राजस्थान, तेलंगाना, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में लागू है. वहीं झारखंड और ओडिशा में लागू होने को लेकर लड़ाई चल रही है. पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल एरिया एक्ट का उद्देश्य जनजातीय आबादी के बड़े हिस्से को स्वशासन प्रदान करना है. अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा को अधिकार दिया गया है. इसके तहत लोक कल्याणकारी योजना गांव में ही बनेगी ओर ग्राम सभा की अनुशंसा पर ही काम किया जाएगा. यह कानून अनुसूचित क्षेत्रों को अधिक स्वायत्ता प्रदान करता है. अधिनियम का उद्देश्य आदिवासी जमीन और जंगल पर उनके अधिकारों की रक्षा करना भी है. यह एक्ट झारखंड के रांची, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, लातेहार, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसांवा, साहिबगंज, दुमका, पाकुड़, जामताड़ा में लागू किया जाना है.
झारखंड में लगातार हो रहा सीएनटी एक्ट का उल्लंघन
इसके साथ ही सीएनटी और एसपीटी एक्ट का भी लगातार उल्लंघन किया जा रहा है. सीएनटी और एसपीटी एक्ट आदिवासियों और अन्य पिछड़ी जातियों की जमीन संरक्षित और सुरक्षित करने के लिए लाया गया था. इस एक्ट में यह प्रावधान है कि आदिवासी की जमीन कोई व्यवसायी अपने हित के लिए नहीं खरीद सकता है. इनकी जमीनें केवल वहीं खरीद सकता है जो उनकी जाति या समुदाय से आता है. समान जाति के किसान इस जमीन को खरीद और बेच सकता है लेकिन इसके लिए उसे जिला अधिकारी की अनुमती लेनी होगी. सीएनटी एक्ट को 1908 में और एसपीटी एक्ट को 1949 में ब्रितानिय हुकू के जरिए लाया गया था. यह एक्ट संताल परगना को छोड़कर सभी जिलों में लागू है. जिसका उल्लंघन बड़े पैमाने पर झारखंड में किया जा रहा है. जिसके खिलाफ भारत आदिवासी पार्टी आवाज उठा रही हैं.
ट्राइबल फंड का दुरूपयोग हो रहा
भारत आदिवासी पार्टी का कहना है कि ट्राइबल सब प्लान फंड का भी झारखंड में लगातार दुरूपयोग किया जा रहा है. यह ऐसा फंड है जिसका इस्तेमाल खनन प्रभावित आदिवासी क्षेत्रों और आदिवासी समुदायों के लिए किया जाना था. लेकिन इसका दुरूपयोग किया जा रहा है. आरटीआई से मिले जवाब के मुताबिक इस राशि को खनन कंपनियों को बांट दी गई है. इस फंड के लिए सभी मंत्रालयों को अपने बजट का एक हिस्सा ट्राइबल देना होता है. कुछ सालों में इस फंड में सैकड़ों करोड़ रुपये जमा हुए, लेकिन वो कहां खर्च हुए इसका हिसाब नहीं है. इसके अलावा कई मांगे है जो भारत आदिवासी पार्टी द्वारा सरकार से की जा रही है.