5101 कुंडीय विश्व शांति वैदिक महायज्ञ में 20 हजार लोगों ने यज्ञ में  आहुति प्रदान की

धर्म अध्यात्म रांची
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रांची:  प्रभात तारा मैदान में विहंगम योग संस्थान की ओर से 5101 कुंडीय विश्व शांति वैदिक महायज्ञ का आयोजन किया गया। संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज के कर कमलों द्वारा अ अंकित श्वेत ध्वजारोहण कर दीप प्रज्जवन किया गया। इस यज्ञ में 20000 लोगों ने यज्ञ में आहुति प्रदान की। यज्ञ से पूर्व प्रातः छह  बजे से आसन प्राणायाम और ज्ञान का कार्यक्रम रखा गया।  इस आसन प्राणायाम कार्यक्रम में दूसरे राज्यों से आए विहंगम योग के अनुयायियों ने हिस्सा लिया। यह कार्यक्रम विहंगम योग संस्थान के प्रणेता सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज की 137वीं जन्म जयंती के अवसर पर आयोजित की गई है।  यज्ञ मे उपस्थित हजारों यज्ञानुरागियों को संबोधित करते हुए सन्त प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने कहा कि  यज्ञ भारतीय संस्कृति का प्राण है, वैदिक धर्म का सार है। यज्ञ श्रेष्ठतम शुभ कर्म है।  यज्ञ का अर्थ है त्याग भाव । अग्नि की ज्वाला सदैव ऊपर की ओर उठती है। अग्नि को बुझा सकते हैं, नीचे झुका नहीं सकते। वैसे ही हमारा जीवन भी ऊध्र्वगामी हो, श्रेष्ठ और पवित्र पथ पर, कल्याणकारी पथ पर निरंतर गतिशील रहे।  हमारे अंतःकरण में ज्ञान की अग्नि जलती रहे, शरीर में कर्म की अग्नि, इन्द्रियों में तप की अग्नि जलती रहे। श्रेष्ठ विचारों की, सद्विचारों की अग्नि प्रज्ज्वलित रहे। अशुभ नष्ट होता रहे। यज्ञ की अग्नि यही संदेश देती है।

महाराज श्री ने यह भी कहा कि यज्ञ श्रेष्ठ मनोकामनाओं की पूर्ति और पर्यावरण शुद्धि का भी साधन है। परन्तु यज्ञ यहीं तक सीमित नहीं है। वैदिक हवन यज्ञ हमारे भीतर त्याग की भावना का विकास करता है। मैं और मेरा से ऊपर उठकर विश्व शान्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। कहा कि आज हो रहे ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने का यह एक ससक्त माध्यम है। इस पर सभी पर्यावरण चिंतको का ध्यान अवश्य होना चाहिए। प्राचीन काल मे ऋषि आश्रमों में प्रत्येक दिन यज्ञ की परंपरा थी। आज के समय मे  पहले से ज्यादा अवश्यक एवं अनिवार्य हो गया है। यज्ञ एवं योग के सामंजस्य से ही विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है। महाराज जी ने बताया कि यज्ञ का धुँआ कोई डीजल या पेट्रोल का धुँआ नहीं है। यह आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों का लाभकारी धूम्र है जिससे स्वास्थ्य लाभ एवं पर्यावरण शुद्धि दोनों का लाभ होता है।

भव्य एवं आकर्षक ढंग से सजी 5100  यज्ञ वेदियों में वैदिक मन्त्रोच्चारण के बीच लाखों दम्पत्तियों ने एक साथ  भौतिक एवं आध्यात्मिक उत्थान के निमित्त आहुतियों को प्रदान किये। यज्ञ के पश्चात् संत प्रवर श्री के दर्शन के लिए  भक्तों  का जनसैलाब उमड़ पड़ा। यज्ञ वेदी से निकल रहे धूम्र से आस. पास के गाँवों का संपूर्ण वातावरण परिशुद्ध होने लगा। यज्ञ के उपरांत  मानव मन की शांति व आध्यात्मिक उत्थान के निमित्त ब्रह्मविद्या विहंगम योग के क्रियात्मक ज्ञान की दीक्षा आगत नए जिज्ञासुओं को दिया गया। जिसमें हजारों नए जिज्ञासुओं ने ब्रह्मविद्या विहंगम योग के क्रियात्मक ज्ञान की दीक्षा को ग्रहणकर अपने जीवन का आध्यात्मिक मार्ग प्रसस्त किया।

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