जल, जंगल और जमीन को अपना सबकुछ मानने वाला आदिवासी समाज नित नए आयाम गढ़ रहा है. आज बात करते हैं झारखंड के आदिवासियों की क्योंकि आज का दिन उनके लिए बेहद खास है. क्योंकि आज 9 अगस्त को 42 साल पहले संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व आदिवासी दिवस घोषित किया था. तो क्यों न आज इस खास मौके पर झारखण्ड के आदिवासी की बात की जाये. झारखंड भारत का एक जनजातीय बहुल राज्य है. झारखंड में कुल 32 जनजातियां पाई जाती हैं, जिनकी जनसंख्या लगभग छियासी लाख पैंतालीस हज़ार बयालीस है, जो झारखंड की जनसंख्या में 26.2% है. इन 32 जनजातियों में से 8 आदिम जनजातियां हैं, जिनकी जनसंख्या एक लाख बानबे हज़ार चार सौ पच्चीस है. इतनी जनसंख्या होने के बावजूद इस समाज के बारे में आज भी लोगों को नहीं पता है. लोग आज भी इनकी परंपरा और संस्कृति से अनजान हैं.
- आदिवासी प्रकृति के पूजक और इसके संरक्षक हैं. इन्हें जंगल, पेड़, पौधों और पशुओं से बहुत प्रेम है
- इनका मुख्य हथियार धनुष-बाण है, ये शिकार करने में माहिर होते हैं.
- सादा जीवनशैली व पारंपरिक भोजन सहज, शालीन और शर्मीला स्वभाव इनकी पहचान होती है.
- अपनी संस्कृति, भूमि व अपनी भाषा से इन्हें बेहद लगाव है.
- पारंपरिक कला व गीत-संगीत से भी इन्हे काफी प्रेम है.
- पूर्वजों द्वारा स्थापित परंपरा का ये आज भी पालन करते हैं.
आदिवासियों की जीवनशैली और रीति-रिवाज अलग-अलग होते हैं और काफी दिलचस्प भी होते हैं. अगर उनके खानपान की बात करें तो वे अधिकतर प्रकृति पर निर्भर होते हैं. उनके त्यौहार भी प्रकृति से ही जुड़े हुए हैं। जैसे – सरहुल, मकर पर्व, कर्मा पूजा और भी बहुत है पहले जिस तरीके से ये लोग अपने त्यौहार मनाते थे और आज की बात करे तो उसमें काफी बदलाव आया है. रहन, सहन, खान पान सबकुछ बदला है, लेकिन आज भी आदिवासी के लिए झारखंड के ज्वलंत मुद्दों पर चिंतन करने की जरूरत है. जल-जंगल-जमीन-पर्यावरण संरक्षण की लड़ाई लड़ने वाले आदिवासी समूह हमेशा संघर्ष करते आ रहे हैं. आदिवासी जमीन पर जबरन कब्जे से आदिवासी बड़ी संख्या में विस्थापित होते जा रहे हैं. खेती की जमीन कम होती जा रही है. प्रकृति, पर्यावरण, जंगल-जमीन, नदी-झील झरना अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं. नौजवान रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में राज्य से बाहर पलायन करने को मजबूर हैं. वहीं, दूसरी ओर नौकरी करने, व्यवसाय करने, मजदूरी करने बाहर से भारी संख्या में लोग आ रहे हैं. स्थानीय आदिवासी-मूलवासी आबादी कम होती जा रही है और बाहर से आयी आबादी बढ़ती जा रही है. झारखंड की बदलती डेमोग्राफी पर भी चिंतन की जरूरत है.