पिछले कुछ दिनों से चंपई सोरेन के भाजपा में शामिल होने के कयास जोर-शोर से लगाए जा रहे है. जिसपर चंपई ने पूर्णविराम लगा दिया. हेमंत सरकार के जल संसाधन मंत्री और राज्य के पूर्व सीएम चंपई सोरेन ही नहीं बल्कि लोबिन हेंब्रम और दशरथ गगराई के भी भाजपा में शामिल होने की खबरें थी, लेबिन हेंब्रम के बयानों ने भी इसे हवा दी, जिसमें उन्होंने चंपई के भाजपा से संपर्क होने की बात कही थी. शनिवार को लोबिन हेंब्रम से मुलाकात के बाद चंपई ने इस दावे को खारिज कर दिया. और लोबिन से अपनी मुलाकात को सामान्य मुलाकात बताया. सफाई देते हुए चंपई सोरेन ने कहा कि हम जहां है वहीं रहेंगे. हम कहीं नहीं जा रहें.
जेएमएम के कई विधायक चंपई के साथ
मीडिया से बात करते हुए चंपई ने कहा कि क्या अफवाह फैल रहा है नहीं फैल रहा है नहीं पता. मुझे इस बारे में कुछ जानकारी ही नहीं है तो इसका आकलन क्यों करेंगे. हम जहां है वहीं रहेंगे. वहीं अब खबर ये आ रही है कि चंपई जेएमएम के कई विधायकों के साथ पहुंचे हैं. आज शाम तक वह भाजपा में शामिल हो सकते हैं.
कोल्हान के सीटों पर चंपई की पकड़
दरअसल, हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद झारखंड की कमान चंपई सोरेन ने संभाली थी. लेकिन पांच महीने के बाद जब हेमंत सोरेन जेल से बाहर आए तो चंपई को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. इस्तीफे के बाद राजनीतिक गलियारें में चंपई के नाराज होने की चर्चा तेज हो गई. पार्टी के प्रति असंतोष की भी अटकलें आने लगी. वहीं दूसरी ओर भाजपा का भी चंपई के प्रति नरम रुक रहा. भाजपा ने कभी चंपई का विरोध नहीं किया. भाजपा के कई नेता चंपई के सीएम कार्यकाल की सराहना करते रहे, जिसके कई कारण भी बताए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि चंपई की कोल्हान में जबरदस्त पकड़ है वहां की 14 सीटों में 13 सीटें इंडि के पास है जबकि एक निर्दलीय विधायक के सरयू राय जीते थे, भाजपा इस सीट पर कब्जा चाहती है. वहीं दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि चंपई अपने बेटे को राजनीति में सेट करना चाहते है वह अपने बेटे बाबूलाल के लिए विधानसभा की एक सीट चाहते हैं, जेएमएम में रहते हुए यह काफी मुश्किल है, सूत्रों की माने तो बीजेपी उन्हें पोटका या घाटशिला सीट ऑफर कर सकती है.
हेंब्रम के पास दूसरा विकल्प नहीं
वहीं लोबिन को शिबू सोरेन का सबसे वफादार सिपाही माना जाता था. 5 बार के विधायक लोबिन को हेमंत के पहले कैबिनेट में तो जगह दी गई लेकिन 2019 में उन्हें हेमंत के कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया.जिसकी वजह से वह हेमंत से नाराज चल रहे थे और हेमंत सरकार को स्थानीय मुद्दों पर घेरने लगे थे. लोकसभा चुनाव में भी हेंब्रम ने निर्दलिय चुनाव लड़ा था जिसके बाद पार्टी ने उन्हें निकाल दिया, उनकी विधानसभा सदस्यता खत्म कर दी गई. अब उनके पास बीजेपी के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है.