
रांची: जनता दल (यूनाईटेड) के वरिष्ठ नेता, धर्मेंन्द्र तिवारी ने कहा कि झारखण्ड में संस्कृत भाषा के विद्यार्थियों को न तो स्कूल और न ही शिक्षक नसीब हो रहे हैं। उन्होंने संस्कृत दिवस के मौके पर कहा कि राज्य में मात्र तीन ही अंगीभूत डिग्री संस्कृत कॉलेज हैं, उनमें से सबसे प्रमुख किशोरगंज स्थित संस्कृत स्कूल है, जो लगभग 100 वर्ष पुरानी है। इस विद्यालय की हालत अत्यंत ही दयनीय है। इस संस्कृत कॉलेज में उप शास्त्री (इंटर) में नामांकन बंद है और संस्कृत की पढ़ाई भी बंद है। साथ ही इस 100 वर्ष पुराने विद्यालय के परिसर में अवैध कब्जा और अतिक्रमण भी हो रहा है। मगर शिक्षा विभाग इससे अनजान बन बैठा है।
श्री धर्मेंन्द्र तिवारी ने कहा कि एक तरफ तो सरकार सभी भाषाओं को समान रूप से शिक्षा देने की बात करती है, मगर संस्कृत के साथ भेदभाव बरतती है, इसके साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है, जो अनुचित है।
उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा विश्व के प्राचीनतम भाषा में से एक है और इसकी जननी भारत देश है। संस्कृत भाषा को देव भाषा की गरिमा से संबोधित किया जाता है, किन्तु झारखण्ड में यह भाषा काफी उपेक्षित है, झारखण्ड में संस्कृत भाषा कराह नहीं रही है बल्कि मृतप्राय हो गयी है, जिससे सनातन संस्कृति को मानने वालों को ग्लानि महसूस होती है।
उन्होंने राज्य सरकार से आग्रह किया कि संस्कृत भाषा के उत्थान पर सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए। शिक्षा विभाग को इसके नियमित पठन-पाठन के लिए प्रखण्ड स्तर पर संस्कृत विद्यालयों की स्थापना एवं संस्कृत शिक्षकों की नियुक्ति करानी चाहिए, किन्तु दुर्भाग्य से यह अब तक नहीं हो पाया है।
श्री तिवारी ने शिक्षा विभाग एवं राज्य सरकार मांग किया कि देव भाषा संस्कृत अन्य राज्यों की तरह झारखण्ड में भी अपनी पहचान बनाए रख सके, इसके लिए पर्याप्त मात्रा में सरकारी संस्कृत विद्यालय एवं विश्वविद्यालय खोले जाए, संस्कृत शिक्षकों की नियुक्ति की जाय। ताकि झारखण्ड के होनहार बच्चें भी देव भाषा संस्कृत को सीखकर शिक्षा एवं समाज के क्षेत्र में अपना योगदान कर सके।