
वर्ल्ड डे अगेंस्ट ट्रैफिकिंग इन पर्सन डे पर कार्यशाला आयोजित
रांची: वर्ल्ड डे अगेंस्ट ट्रैफिकिंग इन पर्सन डे के अवसर पर होटल कैपिटल हिल में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का आयोजन एटसेक इंडिया और झारखंड राज्य बाल संरक्षण संस्था, झारखंड सरकार के तत्वावधान में, बाल कल्याण संघ के सहयोग से किया गया था।
इस कार्यक्रम में जोनल आईजी अखिलेश झा ने कहा कि “केवल महिलाएं और बच्चे ही नहीं, बल्कि पुरुष भी मानव तस्करी के शिकार हो रहे हैं।” उन्होंने मानव तस्करी के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला और इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया।
दिल्ली जैसे शहरों में लोग दुकान खोल के बैठे हैं जिसका नाम प्लेसमेंट एजेंसी हैं मगर वे लोग का मोटो केवल पैसा कमाना है। श्री झा ने बताया कि “प्लेसमेंट एजेंसियों के सभी दस्तावेज़ फर्जी होते हैं। जब हम पुलिस छापेमारी करते हैं, तो पता चलता है कि इनका सारा कामकाज और दस्तावेज़ झूठे हैं।” उन्होंने मानव तस्करी को एक वैश्विक समस्या बताते हुए कहा कि इसके उन्मूलन के लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।
निदेशक समाज कल्याण विभाग शशि प्रकाश झा ने कहा कि पिछले तीन सालों में 400 से ज्यादा बच्चियों को समाज कल्याण विभाग, झारखंड सरकार ने दिल्ली जैसे महानगरों से मानव तस्करी के शिकार बच्चियों को उनके घर तक पुनर्वास किया है, जिसमें 100 से ज्यादा बच्चे साहेबगंज जिला से हैं। उन्होंने कहा कि हम सबको कदम से कदम मिलाकर कार्य करने की आवश्यकता है, जिससे मानव तस्करी को समाप्त किया जा सके। उन्होंने कहा अब साइबर अपराध भी इतना बढ़ गया है की लोग इसको भी तस्करी का जरिया अपना रहे हैं।
एटीएसईसी झारखंड चैप्टर के राज्य समन्वयक सह संस्थापक बाल कल्याण संघ संजय मिश्र ने कहा कि महानगरों में झारखंड की बेटियों की मांग घरेलू नौकर के रूप में अत्यधिक है। इसका कारण यह है कि हमारी बेटियां इतनी मेहनती हैं कि चार घंटे का काम दो घंटे में समाप्त कर सकती हैं और काम से थकती नहीं हैं। इसलिए लोगों की मांग बनी रहती है। हमारे झारखंड से प्रत्येक साल 10 से 12 हजार बच्चियों का असुरक्षित पलायन होता है, जिनमें से लगभग 10 से 20 प्रतिशत बच्चियां ऐसे दलदल में फंस जाती हैं जिसे हम तस्करी कहते हैं। आज हम सबके प्रयास से लोगों की सोच बदल रही है। इसमें थोड़ा समय लगेगा, मगर यह जघन्य अपराध समाप्त होगा।”
सीआईडी के एसपी निधि द्रिवेदी ने कहा कि तस्करी के लिए उनके अभिभावक भी जिम्मेदार हैं। हमने कई ऐसे मामलों को देखा है, जहां बच्चियां 10 साल पहले कमाने के नाम पर बाहर गई थीं, लेकिन दलाल 10 साल तक थोड़ा-थोड़ा पैसा भेजते रहे। अभिभावक चुप रहे, मगर जब पैसा आना बंद हो गया, तब उन्होंने मामला दर्ज कराया या बताया कि उनके बच्चे की तस्करी हो गई है। हम देखते हैं कि बच्चों की तस्करी कर उनके महत्वपूर्ण अंगों को बेच दिया जाता है, और कभी-कभी देह व्यापार के लिए भी उनकी तस्करी की जाती है।
उप सचिव समाज कल्याण विभाग विकास कुमार ने कहा कि बाल कल्याण संघ के साथ मिलकर हमारा विभाग बहुत ही गंभीरता से इस विषय को चुना है और हम एक संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं कि इसे समाप्त कर सकें। यहां एक मंच पर हम सभी जुटे हैं, तो आज के आप सभी के मंतव्य को सरकार के स्तर पर बेहतर करने का हम प्रयास करेंगे।”
कार्यशाला में विभिन्न जिलों के सीडब्ल्यूसी (चाइल्ड वेलफेयर कमेटी), जेजेबी (जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड), डीएसडब्लूओ (डिस्ट्रिक्ट सोशल वेलफेयर ऑफिसर), डीसीपीओ (डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर), यूनिट, और गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। सभी ने अलग-अलग पैनल में बैठकर मानव तस्करी के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की और प्रभावी समाधान सुझाए।
कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य मानव तस्करी के मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाना और इसे रोकने के लिए समाज के सभी वर्गों को एकजुट करना था। विभिन्न वक्ताओं ने मानव तस्करी से प्रभावित लोगों के लिए सहायता और पुनर्वास सेवाओं को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया और सरकार से इस दिशा में ठोस कदम उठाने की अपील की।
कार्यक्रम में राजेश प्रसाद लेबर डिपार्टमेंट के कार्यों को विस्तृत रूप से बताया की बाल मजदूरी करने और कराने में कानूनी प्रक्रिया क्या है इसके बारे में जानकारी दिया। अगर आपके आस पास कोई बाहर कमाने के लिय जा रहा है तो लेबर डिपार्टमेंट का समाधान पोर्टल पर पंजीयन अवश्य करें।