झारखंड में विधानसभा का चुनाव हो गया है. 23 को रिजल्ट आने वाला है जिसका सभी दलों को इंतजार है. लेकिन इन सबके बीच जो चुनावी मुद्दा बना रहा क्या जनता उससे संतुष्ट है ये सवाल कई मायने में अहम है. इसलिए हमारी टीम जनता के पास पहुंची ये जानने के लिए कि उनके क्या विचार है जो मुद्दे को लेकर पक्ष-विपक्ष एक दूसरे पर हमलावर है.
चुनावी मुद्दे से जनता परेशान
शहर के चौक-चौराहे पर जो चर्चा सुनने को मिली वो बिल्कुल मुखर थी राजनीतिक दल के नेताओं के भाषण से. लोग दोनों पक्षों की बातों से नाराज दिखें. लोगों का कहना है कि इस चुनाव में मुद्दे की बात नहीं हुई बेवजह के आरोप-प्रत्यारोप पर चुनाव हो गए. ना युवा की बात हुई ना ही महिलाओं की. घुसपैठियां और मंईयां सम्मान योजना पर पूरा चुनाव खत्म हो गया. जनता करें भी तो क्या करें. मजबूरी है उनकी. बदलने की कवायद होती है लेकिन नतीजें एक से निकलते हैं इसलिए अब उम्मीद भी खत्म हो गई है. हमें कहा जाता है पहले मतदान फिर जलपान. लेकिन जब काम की बारी आती है तो चुनाव के छह महीने पहले से हमारी याद आती है. उनकी आखिरी पंक्ति में हम होते हैं. फिर कुछ योजना लाकर हमें लुभाने की कोशिश करते हैं और पूरे चुनाव में उस योजना का गुणगान करते हैं. सरकार किसी की हो एक ही कहानी दोहराई जाती है हमनें एनडीए और इंडिया दोनों सरकार के कार्यकाल देख लिए. लेकिन नतीजे एक से रहें. यहां आदिवासी लड़कियों की तस्करी सरेआम हो रही है हत्या, किडनैपिंग और रेप मामले में भी लगातार इजाफा हो रहा है लेकिन इसपर कोई बोलने को तैयार नहीं है ना ही ये चुनावी मुद्दा बन पा रहा है और ना ही इसपर किसी तरह का कोई काम हो रहा है.
मंईयां सम्मान योजना और घुसपैठ के मुद्दे रहे हावी
आज झामुमो अपने पूरे चुनाव में मंईयां सम्मान योजना की बात करती रही. अबुआ आवास योजना की बात करती रही और घोषणा पत्र का जिक्र, बाकि वक्त विपक्ष पर हमलावर रही. कल्पना सोरेन कहती है कि आधी आबादी के लिए हेमंत सोरेन ने सोचा. और इसे बढ़ाने की भी बात करती है दिसंबर से. लेकिन क्या एक हजार में महिलाएं रह लेंगी. मैं कल्पना सोरेन को कहूंगा. हम एक हजार देते हैं आपको आकर उसमें एक महीने जिंदगी गुजारिए. एक महीने भी छोड़िए 15 दिन गुजार कर देखिए. युवाओं को नौकरी के बदले महिलाओं को एक हजार देकर पांच साल के लिए उन्हें खरीद ली जाती है और हमें एहसास ही नहीं होता की कब हम उनकी बातों से बिक गए. आप देखेंगे पूरे चुनाव में जेएमएम का यही मुद्दा रहा नहीं तो बीजेपी पर हमलावर दिखें. हेमंत भाजपा नेताओं को चिल-कौवें कहकर कहते रहे कि तीर धनुष से उन्हें मार भगाना है.
राहुल का मुद्दा संविधान बदल रही सरकार
वहीं अगर राहुल गांधी की बात करें तो अडानी-अंबानी और संबिधान बदलने की बात करते रहे. हम इंतजार करते रहें कि हमारी बात होगी लेकिन न राहुल गांधी की बातों में दिखीं ना ही मल्लिकार्जुन खड़गे की. कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे अपने अधिकतर भाषण में बीजेपी के लगे आरोपों पर सफाई देते रह गए.
बीजेपी के भाषण में हिंदू-मुस्लिम मुद्दा रहा हावी
वहीं अगर बीजेपी नेताओं की बात करें तो उनके भाषण में हिंदू-मुस्लिम और घुसपैठियों का मुद्दा रहा. भाजपा झारखंड के सह प्रभारी हिमंता विस्वा सरमा की बात करें तो आलमगीर आलम और हुसैनाबाद, घुसपैठियों के अलावा कोई मुद्दा नहीं रहा. सिपाही भर्ती दौड़ में हुई मौत का मुद्दा उठाते रहें. लेकिन देखें तो दशकों बाद सिपाही भर्ती परीक्षा ली गई. बीजेपी ने भी अपने शासन में अगर परीक्षा लेली होती तो शायद ये नौबत नहीं आती. अगर हम यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ की बात करें या पीएम मोदी या फिर गृह मंत्री अमित शाह की बात करें. उनके भाषणों में भी यहीं मुद्दे देखने को मिले. हां घोषणा पत्र का जिक्र करते रहें. पर लोगों को उससे उम्मीद नहीं दी जा सकती. क्योंकि ये हर बार होता है घोषणा पत्र जारी किया जाता है लेकिन इसका नतीजा नहीं दिखता. 24 साल के झारखंड में बेरोजगारी, पलायन, ह्यूमन तस्करी प्रमुख मुद्दा है लेकिन इसपर जनता खामोश है.
घोषणा पत्र में नहीं जुमला पत्र है
दोनों दलों के घोषणा पत्र की बात करें तो झामुमो ने आदिवासियों की लंबे समय से मांग को पूरा करने का वादा किया है. 1932 आधारित स्थानीयता नीती लाने की बात की गई है तो साथ ही सरना कोड को भी लागू कराने का वादा किया है इसके अलावा जीतने भी वादों का जिक्र है घोषणा पत्र में बीजेपी और झामुमो का लगभग कॉपी पेस्ट है. बीजेपी ने आरक्षण की बात कही है तो जेएमएम ने भी. बीजेपी की मंईयां सम्मान योजना को बीजेपी ने गोगो दीदी योजना से रिप्लेश किया है तो बीजेपी का लक्ष्मी जोहार के तहत 500 में सिलेंडर और दो सिलेंडर मुफ्त देने की बात कहीं गई है तो जेएमएम ने गारंटी योजना के तहत 450 में सिलेंडर देने का वादा किया है. गारंटी किसान कल्याण की में जहां जेएमएम ने MSP 2400 से बढ़ाकर 3200 करने का वादा किया है तो बीजेपी ने 3100. रोजगार और नौकरी 10 लाख हेमंत सोरेन ने देने का वादा किया है तो दूसरी और बीजेपी ने 2.87 लाख नौकरी और पांच लाख रोजगारी देने की बात की है. जो हर बार की जाती है और आखिर आखिर तक युवाओं का हाथ खाली रह जाता है. इसलिए इसबार युवा नाराज दिख रहें हैं क्योंकि वादा करना और उसे धरातल पर उतारना दोनों में फर्क होता है जिसे यहां की जनता भली भाती समझ गई है.