काका, काकी, ताऊ….कहकर वोट लेने वाले नेताजी से आम लोगों का मिलना कितना मुश्किल

काका, काकी, ताऊ….कहकर वोट लेने वाले नेताजी से आम लोगों का मिलना कितना मुश्किल

जन सभा विशेष राजनीति
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शुन्य से शिखर तक पहुंचने में एक सामान्य व्यक्ति को बतौर राजनीतिक पथ पर चलने में जितना संघर्ष करना पड़ता है उससे यह प्रतित होता है कि राजनीति मानों जैसे दांतों तले चना चबाना है. हर नौजवान का यह सपना होता है कि बेहतर शिक्षा लेकर अच्छी नौकरी, अच्छा रोजगार, बेहतर समाज सेवक बन सके. वहीं कुछ ऐसे भी नौजवान होते हैं जिनकी रुची राजनीति में आकर समाज सेवा करने का होता हैं. और इसके लिए वह नौजवान जो राजनीति में अपना कैरियर बनाना चाहता है विधायक सांसद बनने का सपना देखता हैं वह नौजवान रात दिन अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करता है. देश में आज ऐसे कई उदाहरण है जिन्होंने बिना संसाधन का, कम-से-कम संसाधनों में भी बेवाक निडर होकर राजनीति के क्षेत्र में अपने कदम को आगे बढ़ाते रहें, संघर्ष के इस बीच वह नौजवान गांव घर जाकर छात्र-छात्राओं, मजदूरों, शोषितों, दलितों की आवाज बनना हो पूरी कोशिश करता है, उनकी लड़ाई में उनके साथ कदम ताल करता है. प्रशासन से दो-चार करने की बात हो या सत्ता में बैठे हुक्मरानों से लड़ने की बात हो, बेवाक निडर होकर हर उस वर्ग की लड़ाई वह नौजवान लड़ता है जिस लड़ाई के लिए समय की मांग के अनुसार एक लीडर की होती है. धीरे-धीरे संघर्ष के पथ पर अपने लक्ष्य की ओर वह नौजवान बढ़ते जाता है और जिस भी क्षेत्र में वह लोगों की लड़ाई लड़ता है वहां की एक आवाज होता है. किसी राजनीतिक पार्टी का दामन थाम लेता है. राजनीतिक पार्टी का दामन थामने के बाद वह व्यक्ति पार्टी में भी अपनी लोकप्रियता को कायम रखता है. उसके जुनून, लगन, संघर्ष को देखते हुए पार्टी उसको प्रत्याशी के तौर पर अपना कैंडिडेट बनाती है. उम्मीदवार बनाए जाने के बाद वह नौजवान हर उस घर तक जाता है लोगों से अपने विजन के बार में अपने लक्ष्य के बार में बताता है. चाचा, चाची, ताऊ कहकर लोगों को अपने पक्ष में वोट देने के लिए आग्रह करता है लोग उसकी बातों में आ जाते हैं उन्हें अपना आर्शीवाद के तौर पर वोट देकर विधायक सांसद बनाकर सदन भेजने का काम करते हैं. लेकिन चुनाव जीतने के बाद नेताजी के तेवर बदल जाते हैं. जो व्यक्ति एक वोट के लिए गिरगिरा रहा था, आज उस व्यक्ति को नेताजी से मिलने के लिए सालों-साल संघर्ष करना पड़ता है, चप्पलें घिस जाती है लेकिन नेताजी से मुलाकात नहीं हो पाती.

विधानसभा चुनाव का टिकट मिलते ही विनोद हर शाम किसी गांव का चक्कर लगा जाता. कुर्सी की जगह खाट पर बैठना पसंद करता. लोगों के साथ चाय नाश्ता करता, बिना किसी भेदभाव के लोगों से घंटों बात करता, बोलने से ज्यादा सुनता. उनकी समस्या को सुनकर आश्वासन देता की चुनाव जीतते ही उनकी समस्याओं का हल करेगा. इस दौरान न जाने कितने लोगों से उनकी बेटी की शादी और पढ़ाई का खर्च उठाने का वादा कर दिया. गड्ढे होती गांव की सड़के और बढ़ते क्राइम की चर्चा चाय पर करता और लोगों को भरोसा दिलाता की एक बार जीतने की देर है, उनकी सभी समस्या हल कर दी जाएगी. गांववासी भी एक उम्मीद लिए गांव के उस लड़के की बात में आ जाते. विनोद के आते ही लोग सारे काम छोड़कर उनकी खातिरदारी में जुट जाते. इसी बहाने अपनी समस्या भी बता देंगे. सालों साल विनोद ने लोगों की आवाज उठाई है. गांव पर आती हर समस्या से लड़ा है. इसलिए सभी को उम्मीद भी थी कि विनोद के विधायक बनते ही उनकी समस्या यूं फुर्र हो जाएगी, जैसे कभी थी ही नहीं. वरना कौन से नेता है जो हर शाम घंटों गांव में बिताते हैं. लोगों ने भी वादा कर दिया कि किसी भी हाल में उसे जिताना है. वादा के मुताबिक लोगों ने एकतरफा वोट दिया. सुबह नाश्ता बनाने की जगह विनोद को वोट देने चले गए. जब रिजल्ट आया तो विनोद बड़े अंतर से जीत भी गया. अब बारी थी नेताजी बने विनोद को अपना वादा निभाने की. क्योंकि जनता ने तो अपना वादा पूरा कर दिया था.

लोगों में खुशी थी उत्साह था. गांव में अच्छे स्कूल और सड़के बनने वाली थी. बेटी की शादी और पढ़ाई का खर्च भी कम पड़ने वाला था. गांववालों ने खूब जश्न मनाया, विनोद से ज्यादा गांववालों ने मिठाईयां बांटी. रिजल्ट आने के कई महीनों तक गांववालों ने नेता बने विनोद का इंतजार किया, शायद वो मिलने आएगा, पर नहीं आया. और ना ही उनके किसी समस्या का सामाधान हुआ. इंतजार जब हार गई तो विनोद से मिलने गांववाले पहुंचे. गांववालों ने कहा उसे विनोद से मिलना है तो गार्ड ने भी खरी-खोटी सुना दी, नेताजी है…और आम इंसान नहीं जिसे नाम से बुला रहे हो, गार्ड के कहने पर लोगों ने नेताजी से मिलने की इच्छा जाहिर की. घर के बाहर खड़े गार्ड ने नेताजी बीजी है कहकर उन्हें वहां से भगा दिया गया. नेताजी के घर से कुछ दूरी पर लोग इंतजार करते रहे कभी तो नेताजी निकलेंगे और उनसे बात होगी. नेताजी घर से बाहर भी आए पर नेताजी के बॉडीगार्ड ने लोगों को उनतक पहुंचने भी नहीं दिया, नेताजी ने इसतरह नजरें फेरी जैसे जानते भी न हो.

कई लोगों ने नेताजी से मिलने की जिद में पूरी रात सड़क पर बिता दी. अगली सुबह नेताजी के गेट पर खड़े गार्ड ने कहा कि नेताजी दिल्ली चले गए, अगले सप्ताह आएंगे. एक झूठी उम्मीद लिए गांववासी घर आ गए. नेताजी से मिलने के हर तिकरम आजमा चुके लोगों को एक बार फिर उम्मीद नजर आई जब नेताजी के साथ रहने वाले एक व्यक्ति ने उनसे नेताजी से मिलाने का वादा किया. कुछ पैसे की मांग की, लोगों ने बिना शर्त पैसे दे दिए, और व्यक्ति नेताजी जी से मिलने की तारिख. तय तारिख पर मिलने पहुंचे लोगों को अगली तारिख दी जाने लगी और बदले में पैसे लिए जाने लगे. बेटी की पढ़ाई और शादी के लिए रखे पैसे नेताजी से मिलने की उम्मीद में लग गई, नेताजी से मिलने की उम्मीद में नई चप्पल ली थी वो भी घिस गई पर नेताजी से मिलना नहीं हो पाया. आखिर में गांववालों ने हार मान ली.

देखते-देखते पांच साल गुजर गए, नेताजी एक बार फिर मैदान में थे. इस बार महीनों पहले लोगों के घर जाकर बैठना तो नहीं हुआ पर चुनाव से कुछ दिन पहले लोगों के बीच जाकर वोट देने की अपील की. पिछली बार से इसबार नेताजी के तेवर थोड़े बदले बदले से थे. पिछली बार जहां नार्मल शर्ट में मिलने आए नेताजी इसबार बड़ी गाड़ी में सूट बूट में नजर आएं. लोगों से बैठकर घंटों बाते नहीं की, लोगों ने समस्या सुनाना शुरू किया उससे पहले ही कुछ पैसे बांट दिए, किसी की बेटी की पढ़ाई तो किसी की शादी के लिए. लोगों से कहा वो सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं वक्त लगता है इसबार जीत जाए तो पक्का सड़के और स्कूल तो बनवा ही देंगे. कुछ लोगों ने विरोध भी किया, इसके अलावा वो करते भी क्या. हर बार कोई आता है और यूं ही बेवकूफ बनाकर चला जाता है. और हर बार वो उनकी बातों में आ जाते हैं. अपना वादा तो निभा देते हैं और फिर हार जाते हैं….. और नेताजी हर बार वादा करते है और भूल जाते हैं….नेताजी विधायक से सांसद और केंद्र में मंत्री भी बन गए, और लोग आज भी उनके किसी वादा पूरा होने की उम्मीद लिए किसी चौराहे पर बैठे नजर आ जाते हैं.

राजनेताओं की मानसिकता को देखते हुए मतदाताओं को एक काम जरूर करना चाहिए जब नेताजी वोट मागने आते हैं और जो वादे कर जाते हैं उन वादों का एक लिखित दस्तावेज बनवा लें और उसपर नेताजी से साइन करवा लें, कि वो इन वादों को पूरा करेंगे. अगर नहीं किया तो अगली बार यह दरवाजा उनके लिए बंद हो जाएगा. और इस दस्तावेज को लेकर अगर उनसे मिलने जाए तो नेताजी से मिलने के लिए हमें उनके किसी बॉडीगार्ड या दाएं-बाएं की जरूरत नहीं पड़े. हम आसानी से उनसे मिल सकते हैं.

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