रांची नगर निगम का जल संरक्षण एवं संचयन के लिए जनजागरूकता अभियान
रांची: राजधानी रांची की तपती एवं प्यासी धरती की प्यास बुझाने और भविष्य में भीषण जल संकट से बचने के लिए वर्षा जल संचयन और संरक्षण ( रेन वाटर हार्वेस्टिंग ) आवश्यक है। सतही जल उपलब्ध नहीं होने के कारण भूगर्भ जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। यह अलार्मी स्थिति है। इसको लेकर राज्य सरकार गभींर भी है। सरकार ने विशेष कर रांची नगर निगम को सभी आवश्यक उपाय कर जन जागरूकता अभियान चलाकर रेन वाटर हारवेस्टिंग कराने का निर्देश दिया है।
अभी जो रेन वाटर हारवेस्टिंग के लिए नियम बना है उसके अनुसार 3000 स्क्वायर फीट से अधिक वाले आवासों के लिए रेन वाटर हारवेस्टिंग आवश्यक हैं। इस नियम के कारण लगभग 60 हजार आवास रेन वाटर हारवेस्टिंग नहीं करायें हैं जबकि यह सभी आवास पानी का उपयोग करते हैं । नियम के तहत रेन वाटर हारवेस्टिंग की सीमा में आने वाले 79772 आवास हैं। इसमें से 52668 आवासों में रेन वाटर हारवेस्टिंग सिस्टम लगा हुआ है। 27104 आवासों में रेन वाटर हारवेस्टिंग नहीं है। इसके लिए रांची नगर निगम जल्द ही सर्वे करा कर इन आवासों को सिस्टम लगवाने का प्रयास करेगा। इन आवासों के मालिको को जुर्माना स्वरूप डेढ गुना होल्डिंग टैक्स देना पड़ रहा है।
रांची नगर निगम ने रेन वाटर हारवेस्टिंग के लिए फिलहाल प्रचार प्रसार अभियान चला रहा है। इसके लिए लोगों को सूचना देने , शिक्षित करने और संचार की गतिविधियां भी चला रहा है। लगभग 15000 पंपलेट का वितरण कराने के साथ ही शहर के 30 स्थलों पर रेन वाटर हारवेस्टिंग से संबंधित होर्डिंग भी लगाये जायेंगे। इसके अलावा एनजीओ को भी जनजागरण अभियान चलाने के लिए घर घर जाकर रेन वाटर हारवेस्टिंग के लाभ को बताने के लिए लगाया गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि पानी संकट से बचने के लिए स्वयं लोगों को आगे आना होगा नही तो रांची के लोगो को भी बंगलोर की तरह पानी के टैंकर पर निर्भर रहना होगा। बंगलोर में तो अब पानी का टैंकर भी दो दिन बात पहले से बुकिंग करने पर मिल रहा है।
रांची नगर निगम ने रेन वाटर हारवेस्टिंग का काम करने वाली तीन एजेसिंयो को काय आवंटित किया है। एक आवास में रेनवाटर हारवेस्ंिटंग पर लगभग 40 हजार रुपये खर्च आता है। रेन वाटर हारवेस्टिंग करा कर जीवन भर के जल संकट से बचा जा सकता है। अधिक भूगर्भ जल दोहन से बोरिंग फेल हो रहे है। कुंआ सूख रहा है। वृक्षा रोपण नहीं होने से वर्षा कम हो रही है। जिसका प्रतिफल यह है कि नदी , नहर, तालाब , आहर पोखर बंजर भूमि के रूप में तब्दील हो रहे है।