चुनाव आयोग ने चुनाव संबंधित नियमों में बदलाव किया है. जिसके तहत अब पोल बूथ से जुड़ी इलेक्ट्रिक डिवाइस किसी को उपलब्ध नहीं कराए जाएंगे. जिसमें सीसीटीवी कैमरा और वेबकास्टिंग फुटेज, उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है. चुनाव आयोग का कहना है कि चुनाव से संबंधित बाकी डॉक्यूमेंट्स दिए जा सकते है सिवाए इलेक्ट्रिक डिवाइस के. इसको लेकर ईसी ने कहा है कि इलेक्ट्रीक डिवाइस सार्वजनिक होने से वोटर्स को खतरा हो सकता है लोग एआई की मदद से उसमें फेर बदल कर सकते हैं जो काफी आसान हो गया है. खासतौर से जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाके में यह सुरक्षा का मसला बन सकता है और वोटरों की जिंदगी पर भी संकट आ सकता है. जिसके बाद कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने बीजेपी और चुनाव आयोग पर हमला बोलते हुए कहा कि वह इसके लिए कोर्ट का रुख करेंगे. चुनाव आयोग के इस फैसले को चुनौती देंगे.
1961 के नियम 93 में किया गया संशोधन
चुनाव आयोग का यह फैसला ऐसे समय में आया है. जब एडवोकेट महमूद प्राचा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनाव से संबंधित कागजात मांगे थे. जिसमें चुनाव के दौरान हुई वीडियोग्राफी, सीसीटीवी कैमरा फुटेज, फॉर्म 17-सी पार्ट 1 और पार्ट 2 की कॉपीज मांगी थी. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को चुनाव से संबंधित सभी कागजात को उपलब्ध कराने को कहा था. लेकिन इसके बाद चुनाव आयोग ने नियम में बदलाव कर इलेक्ट्रिक डिवाइस देने से इंकार कर दिया. आयोग ने बदलाव करते हुए नियमों में एक लाइन जोड़ी है जिसमें स्पस्ट किया है कि पेपर्स की लिस्ट में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स शामिल नहीं होंगे, जिनके बारे में नियमों में नहीं कहा गया है. यह बदलाव केंद्रीय कानून मंत्रालय ने सार्वजनिक निरीक्षण के लिए रखे गए कागजात या दस्तावेज के प्रकार को प्रतिबंधित करने के लिए चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93 में संशोधन किया है. इसके तहत केवल नियमों में उल्लेखित कागजात ही सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध होंगे और कोई अन्य दस्तावेज जिसका नियमों में कोई संदर्भ नहीं है उसकी सार्वजनिक निरीक्षण की अनुमति नहीं दी जाएगी.
चुनाव आयोग के खिलाफ कोर्ट जाएगी कांग्रेस
नियम में बदलाव से पहले आम जनता को चुनाव से रिलेटेड सभी सामग्री उपलब्ध कराए जा सकते थे. कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स के सेक्शन 93(2) के तहत चुनाव से संबंधित सभी कागजात आम जनता के निरीक्षण के लिए उपलब्ध थे. लेकिन इसके लिए कोर्ट का परमिशन जरूरी था. लेकिन अब सीसीटीवी नहीं देने से कांग्रेस ने मोदी सरकार और चुनाव आयोग पर चुनावी प्रक्रिया में शुचिता और पारदर्शिता को खत्म करने का आरोप लगाया है.