‘आरक्षण को निजी जागीर समझते हैं कुछ लोग…..’

आदिवासी
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क्रीमी लेयर के समर्थन में उतरे अनुसूचित जाति, जनजाति के लोग

देशभर में आरक्षण में क्रीमी लेयर का विरोध हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ दलित और आदिवासी समाज सड़कों पर उतर आए हैं. जगह-जगह प्रदर्शन किया जा रहा है वहीं कुछ लोग ऐसे भी है जो क्रीमी लेयर के समर्थन में है जिनका कहना है कि आरक्षण में क्रीमी लेयर आने से राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा. दूसरे लोगों को भी राजा बनने का मौका मिलेगा.

देश में SC/ST/OBC समुदाय में कई ऐसे लोग है जो आरक्षण का लाभ सालों से ले रहे, उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते जा रही है वहीं कई ऐसे लोग अब भी है जो आजतक इसका फायदा नहीं उठा पाए. आज भी वो बेबसी, लाचारी, मुफलीसी जिंदगी जिने को मजबूर है. उनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं है. इसको लेकर झारखंड आदिवासी समन्वय समिति के संयोजन लक्ष्मी नारायण मुंडा का बड़ा बयान सामने आया है. लक्ष्मी नारायण मुंडा ने कहा कि आरक्षण में क्रीमी लेकर के खिलाफ लड़ाई दलित और आदिवासियों की नहीं है यह लड़ाई संपन्न और निर्धन लोगों की लड़ाई है.

लक्ष्मी नारायण मुंडा ने कहा, आजादी के 78 वर्षो में परिस्थितियां काफी बदली हुई हुई है। आदिवासियों, दलितों पिछड़े वर्गो में एलिट संपन्न तबका उभरा है जो दबे – कुचले आदिवासियों,दलितों, पिछड़े वर्ग के लोगों को आगे बढ़ने का मौका नहीं देता है। बल्कि कब्जाए रखा है। इसलिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व/हिस्सेदारी और नौकरियों में क्रीमी लेयर को बहाल किया जाना चाहिए। इस पर बहुतेरे लोगों का तर्क बहस होंगे कि देश में आरक्षण का आधार सामाजिक भेदभाव और अपृश्यता है। भारतीय समाज को अवलोकन करें तो इससे इन्कार नही किया जा सकता है। लेकिन यह भी सच्चाई है कि आदिवासियों,दलितों पिछड़ों वर्गो में भी संपन्न दलिट तबका उभरा है जो आर्थिक/ बौद्धिक/ राजनीतिक संपन्नता हासिल कर नवसामंत बन चुका है जो अपने ही दबे-कुचले गरीब आदिवासियों, दलितों, पिछड़े वर्गों के साथ गैर बराबरी व्यवहार करता है। वहीं अपने समुदाय को आगे बढ़ाने में भी कोई योगदान नही देता है। यह तबका आरक्षण को आदिवासियों, दलितों, पिछड़े समुदाय का नही अपनी निजि जागीर समझता है। ऐसे लोगों को क्रीमीलेयर के दायरे में लाकर राजनीतिक सीटों और नौकरियों में आरक्षण से वंचित करना चाहिए।

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